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नज़्म
कब आ रहे हो लिखो फ़त्ह का निशाँ ले कर
हम इंतिज़ार में हैं नज़्र-ए-जिस्म-ओ-जाँ ले कर
क़ैसर-उल जाफ़री
नज़्म
अभी आज़ादी-ए-जिस्म-ओ-दिल-ओ-जाँ का तराना हम ने छेड़ा था
अभी कस ने तुम्हारे दिल पे फिर फूँका वही मंतर
अमीक़ हनफ़ी
नज़्म
गुलिस्तान-ए-अदब में जिस क़दर थे मुंतशिर जल्वे
मुनज़्ज़म कर चुकी है उन को मिस्ल-ए-जिस्म-ओ-जाँ उर्दू