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नज़्म
कि आलम इक बहार-ए-सुर्ख़ी-ए-ख़ून-ए-शहीदाँ है
ये महर-ओ-माह ओ परवीं ये ज़मीं ये लाला-ओ-नस्रीं
उबैदुर्रहमान आज़मी
नज़्म
दिल-ए-बेताब में पिन्हाँ है हर अरमान-ए-नज़र
चश्म-ए-मुश्ताक़ में है सुर्ख़ी-ए-अफ़्साना-ए-दिल
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
न सुर्ख़ी-ए-लब-ए-खंजर न रंग-ए-नोक-ए-सिनाँ
न ख़ाक पर कोई धब्बा न बाम पर कोई दाग़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ज़िंदगी मुज़्मर है तेरी शोख़ी-ए-तहरीर में
ताब-ए-गोयाई से जुम्बिश है लब-ए-तस्वीर में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नक़्श फ़रियादी है इन की शोख़ी-ए-तहरीर का
म'अरका होता है अब तदबीर का तक़दीर का
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
न ज़िक्र-ए-सुर्ख़ी-ए-लब और न तेरी चश्म की बात
तिरी जबीं का उजाला न तेरी ज़ुल्फ़ की रात
रियाज़ अनवर
नज़्म
नक़्श-ए-फ़र्यादी है तेरी शोख़ी-ए-तहरीर का
काग़ज़ी है पैरहन हर पैकर-ए-तस्वीर का
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
दिलों को अब भी चमकाती है शम-ए-आरज़ू तेरी
लब-ए-तहरीर पर अब तक है शीरीं गुफ़्तुगू तेरी
मयकश अकबराबादी
नज़्म
फ़ारिया हमीद चौधरी
नज़्म
रात आती थी सुनाने सोज़ का पैग़ाम जब
मश्क़-ए-तहरीर-ए-जुनूँ बनता था तेरा नाम जब