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नज़्म
यूसुफ़ ज़फ़र
नज़्म
मुल्क की ख़िदमत के रस्ते में जो दुख आए सहना है
ये सैलाब-ए-सुर्ख़ नहीं है ज़ुल्म-ओ-सितम की आँधी है
अर्श मलसियानी
नज़्म
छोड़ दे मुतरिब बस अब लिल्लाह पीछा छोड़ दे
काम का ये वक़्त है कुछ काम करने दे मुझे
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये मेरे दिल की पगडंडी पे चलती नज़्म है कोई
कि सैल-ए-वक़्त की भटकी हुई इक लहर सा लम्हा
नाहीद क़मर
नज़्म
गंगा दरिया की लहरों की रानाई का क्या कहना
कैसा प्यारा प्यारा है इस का बल खा खा कर बहना