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नज़्म
तितलियाँ अपने परों पर पा के क़ाबू हर तरफ़
सेहन-ए-गुलशन की रविश पर रक़्स फ़रमाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
देखो वो जाती है रिश्वत से ख़रीदी हुई कार
सेहन-ए-गुलशन में हो जैसे गुज़राँ मौज-ए-बहार
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
याद आता जा रहा था मुझ को कोई ज़र-निगार
जिस पे होती है तसद्दुक़ सेहन-ए-गुलशन की बहार
शाहिद सागरी
नज़्म
भीनी भीनी बू-ए-गुल रक़्स-ए-हवा कुछ भी न था
सेहन-ए-गुलशन में उदासी के सिवा कुछ भी न था
जौहर निज़ामी
नज़्म
दामन-ए-गुल ख़ून की बूंदों से फिर नम हो न जाए
सेहन-ए-गुलशन में कहीं नम-दीदा शबनम हो न जाए
सलाहुद्दीन नय्यर
नज़्म
सेहन-ए-चमन पर भौउँरों के बादल एक ही पल को छाएँगे
फिर न वो जा कर लौट सकेंगे फिर न वो जा कर आएँगे
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
सेहन-ए-गुलशन की फ़ज़ाएँ फिर मोअ'त्तर हो गईं
ताएरों के सुन के नग़्मे ख़ुद भी शाख़ें सो गईं