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नज़्म
आँख है और बारिश-ए-सैलाब-ए-ख़ूँ तेरे बग़ैर
आ कि रुस्वा है मिरा हाल-ए-ज़बूँ तेरे बग़ैर
जौहर निज़ामी
नज़्म
जिलौ में इन के वो सैलाब-ए-किशत-ओ-ख़ूँ होगा
लरज़ उठेंगी हिमाला की चोटियाँ इक दिन
मसूद अख़्तर जमाल
नज़्म
फूट निकला दर-ओ-दीवार से सैलाब-ए-नशात
अल्लाह अल्लाह मिरा कैफ़-ए-नज़र आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
क्या आज मैं अपने सोए हुए जज़्बात-ए-जुनूँ बेदार करूँ
सैलाब-ए-हवादिस बन जाऊँ बर्बादी-ए-सद-आज़ाद करूँ