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नज़्म
सागर से उभरी लहर हूँ मैं सागर में फिर खो जाऊँगा
मिट्टी की रूह का सपना हूँ मिट्टी में फिर सो जाऊँगा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मिल-जुल के करेंगे गर मेहनत हो जाएगा हर सपना पूरा
हिम्मत से हुई हैं तामीरें जुरअत से हुआ है काम नया
शौकत परदेसी
नज़्म
पर क्या करूँ सपने मेरे बस में नहीं हैं
इस लिए हर बार ये सपना आँख से बूँद के साथ बहा देती हूँ
अंकिता गर्ग
नज़्म
बड़ी ख़ुशी से तुम्हें सौंपने के लिए तय्यार हूँ
मैं अपने पाँव में बंधी गृहस्ती की बेड़ियों को
अतीया दाऊद
नज़्म
मरने वालों को भी हर ए'ज़ाज़ पार्लियामेंट में
एहतिमामन वारिसों के हाथ में सौंपा गया