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नज़्म
पढ़ के जिस के हो गईं हुश्यार अक़वाम-ए-ग़ुलाम
इश्तिराकी फ़ल्सफ़ा का खुल गया हर दिल में बाब
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
वोटों से बढ़ के अब कोई हथियार भी नहीं
''लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
जो हथियार की शक्ल में रंज-ओ-ग़म ढालते हैं
या गोला-बारूद के कार-ख़ानों के मालिक हैं
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
कहीं क़िर्तास ख़ाली का वो बे-उनवान साहिल है
जहाँ आशुफ़्तगान-ए-अद्ल ने हथियार डाले हैं