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नज़्म
हम-सफ़ीरों के क़दम इतने हम-आहंग नहीं
फिर भी इन क़दमों की आहट जो बहुत तेज़ है आज
ज़हीर नाशाद दरभंगवी
नज़्म
ताइरान-ए-बाग़ ने छेड़ा है साज़-ए-इम्बिसात
तेरे मक़्दम में है शाख़ों पर हम-आहंग-ए-नशात
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
नानक का कबित बन जाती है मीरा का भजन बन जाता है
दिल दिल से जो हम आहंग हुए अतवार मिले अंदाज़ मिले