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नज़्म
है दाख़िल फ़ितरत-ए-मुनइ'म में नादारों को तड़पाना
सर-ए-पा-ए-हिक़ारत से हर इक बेकस को ठुकराना
टीका राम सुख़न
नज़्म
ज़ुल्म है जौर-ओ-जफ़ा है हर तरफ़ बेदाद है
गर्दिश-ए-दस्त-ए-सितमगर से जहाँ बर्बाद है
टीका राम सुख़न
नज़्म
चमकते हुए सब बुतों को मिटा दो
कि अब लौह-ए-दिल से हर इक नक़्श हर्फ़-ए-ग़लत की तरह मिट चुका है
फ़ख़्र-ए-आलम नोमानी
नज़्म
वो जाँ-फ़रेबी-ए-इज़हार-ए-दिल-नवाज़-ए-सुख़न
जबीं पे वुसअ'त-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र की तहरीरें
मुस्लिम शमीम
नज़्म
यहीं की थी मोहब्बत के सबक़ की इब्तिदा मैं ने
यहीं की जुरअत-ए-इज़हार-ए-हर्फ़-ए-मुद्दआ मैं ने