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नज़्म
जब पूँजी बाट में बिखरेगी हर आन बनेगी जान ऊपर
नौबत नक़्क़ारे बान निशान दौलत हशमत फ़ौजें लश्कर
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
हशमत में जिन की अर्श से ऊँची थी बारगाह
मरते ही उन के तन हुए गलियों की ख़ाक-ए-राह
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तमाशा इक अजब सा एक दिन यूँ राह में देखा
किसी को देखते हैं लोग इक मजमा इकट्ठा है
सय्यद हशमत सुहैल
नज़्म
मौलवी जन्नत में पहोंचे तो अजब थे सिलसिले
नाश्ते में सुब्ह को बस चाय और पापय मिले
सय्यद हशमत सुहैल
नज़्म
शायरी को हम समझते हैं जो रूहानी ग़िज़ा
बाज़ लोगों के लिए हो जाती है अक्सर अज़ाब
सय्यद हशमत सुहैल
नज़्म
चाहता है मुझे तू क्या मिरी हशमत के लिए
दिल है बेकल तिरा मेरे ज़र-ओ-दौलत के लिए