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नज़्म
ग़म-ए-हयात को हँस हँस के जो उठाता है
उसी को मिलता है याँ लुत्फ़-ए-जाविदान-ए-हयात
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
नज़्म
आओ अपने दिल में दर्द-ए-ला-दवा पैदा करें
शिद्दत-ए-ग़म में मसर्रत का मज़ा पैदा करें
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
नज़्म
मुतमइन हो न सकीं मेरी सुलगती नज़रें
हस्ब-ए-दिल-ख़्वाह मुझे ज़ौक़-ए-जुनूँ मिल न सका
नज़ीर मिर्ज़ा बर्लास
नज़्म
अपनी ग़ैरत बेच डालीं अपना मस्लक छोड़ दें
रहनुमाओं में भी कुछ लोगों का ये मंशा तो है