aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "हाजत-ए-रफ़ू"
न ख़्वाब आएँ मिरी नींद इतनी गहरी होसहर को हाजत-ए-तफ़्सीर-ए-ख़्वाब हो न 'अमीर'
दवा हर दुख की है मजरूह-ए-तेग़-ए-आरज़ू रहनाइलाज-ए-ज़ख़्म है आज़ाद-ए-एहसान-ए-रफ़ू रहना
काश तू मेरी ख़मोशी की सदा सुन सकतीनग़्मा-ख़्वानी के लिए हाजत-ए-आवाज़ नहीं
ये तक़ाज़ा था जाने वालों काबिछड़ी नस्लों से राब्ते में रहूँ
दोस्तों से कह दोहम हालत-ए-जंग में
हालत-ए-तशन्नुज और नज़्अ' दरमियानरौशनी इंतिज़ार में देखा
ताकि मैं हालत-ए-अलम में भीझूमता गाता मुस्कुरा देता
यही एक मंज़र-ए-रू-ब-रूमिरे शश जिहात की दास्ताँ
मगर किताब की तक़रीब-ए-रू-नुमाई मेंकिताब चीख़ रही थी कि मैं किताब नहीं
हालत-ए-हाल ऐसी है किदिन का सोते हुए बीत जाना
जाग उठी आईना-ए-रू-ब-रू करवट लेतीऊँचे आफ़ाक़-शिकन सैल की मस्ताना नफ़ीर
ये सोते-जागते लम्हातमुझे अब हालत-ए-एहसास में रहने नहीं देते
जैसे साए रेंग रहे होंहालत ये इंसानों की है
जल्वा-ए-रू-ए-हक़ीक़त से निगाहें फेरेअपने औहाम से सरगोशियाँ करते हुए लोग
मोहब्बत के जल्वों से मामूर हो करहुइ जारी रही थी अजब हालत-ए-दिल
लोग कहते हैंहम उस वक़्त हमेशा हालत-ए-जंग में नज़र आते थे
अब तक ब-हालत-ए-जंग हूँगुज़िश्ता की सारी नस्लों के
इस फ़रेब-ज़ार में ना-पसंद की गईहालत-ए-सितम-नसीब देखता नहीं कोई
दीदनी क़स्र नहीं दीदनी तक़्सीम है येरू-ए-हस्ती पे धुआँ क़ब्र पे रक़्स-ए-अनवार
क़ुर्बानियों का दौर है बकरों की ख़ैर होहै और बात हालत-ए-इंसान ग़ैर हो
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