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नज़्म
मैं ने जो ग़ैब की सरकार से माँगा वो मिला
जो अक़ीदा था मिरे दिल का हिलाए न हिला
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
ज़माना कर रहा है कोशिशें हम को मिटाने की
हिला पाता नहीं जिस को वो बुनियाद-ए-कुहन हम हैं