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नज़्म
वो सुनते रहते हैं बस हुक्म-ए-हाकिमान-ए-जहाँ
तवाफ़ करते हैं अर्बाब-ए-गी-ओ-दार के गिर्द
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
उठा होटल का 'पर्दा सामने पर्दा-नशीं आए
जो छुप कर कर रहे थे एहतिराम-ए-हुक्म-ए-दीं आए
मजीद लाहौरी
नज़्म
ज़माना गुज़रा कि फ़रहाद ओ क़ैस ख़त्म हुए
ये किस पे अहल-ए-जहाँ हुक्म-ए-संग-बारी है