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नज़्म
कुछ हो गया ज़माना का उल्टा चलन यहाँ
हुब्ब-ए-वतन के बदले है बुग़ज़-उल-वतन यहाँ
मोहम्मद हुसैन आज़ाद
नज़्म
क्या ख़ुदा का ख़ौफ़ कैसा जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन
बरसर-ए-पैकार थे आपस में शैख़-ओ-बरहमन
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
तमाम अहल-ए-ज़मीं की हमदमी का ज़िक्र अभी से क्यों
अभी तो जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन की आज़माइश है
फ़ज़लुर्रहमान
नज़्म
गाएँगे हुब्ब-ए-वतन के राग लाखों अंदलीब
और मिल जाएँगे अमराज़-ए-सियासत के तबीब
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
कहीं हुब्ब-ए-वतन की आग लफ़्ज़ों में भरी देखी
कहीं मंज़र-निगारी की हसीं जादूगरी देखी
बिर्ज लाल रअना
नज़्म
है जिन्हें सब से ज़ियादा दावा-ए-हुब्बुलवतन
आज उन की वज्ह से हुब्ब-ए-वतन रुस्वा तो है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
हुब्ब-ए-वतन को जुज़्व-ए-ईमाँ कहा गया है
वाइज़ समझ के कीजो तकफ़ीर गोखले की
ज़ाहिदा ख़ातून शरवानिया
नज़्म
अब यही कोशिश है दिल से ऐ मिरी अर्ज़-ए-वतन
तेरी पेशानी पे अब कोई शिकन आने न पाए
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
मस्त हूँ हुब्ब-ए-वतन से कोई मय-ख़्वार नहीं
मुझ को मग़रिब की नुमाइश से सरोकार नहीं