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नज़्म
सदा दो अंजुम-ए-अफ़्लाक रक़्स फ़रमाएँ
बुतान-ए-काफ़िर-ओ-सफ़्फ़ाक रक़्स फ़रमाएँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
गोलकुंडा हुसन-ए-तहज़ीब-ओ-तमद्दुन का दयार
अज़मत-ए-अफ़साना-ए-हस्ती की ज़िंदा यादगार
ख़ुर्शीद अहमद जामी
नज़्म
दहकती आग भी तय्यार रक्खी है... दिल-ए-काफ़िर
में उस की मेहरबानी और रहमत का तसव्वुर भी
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
हुरमतुल इकराम
नज़्म
इक निगार-ए-नाज़ की फिरने लगीं आँखें 'मजाज़'
इक बुत-ए-काफ़िर का दिल दर्द-आश्ना होने लगा