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नज़्म
इसी की क़ुव्वत-ए-बाज़ू पे है मग़रूर अमरीका
इसी के बिल पर लड़की हो रही है रुस्तम-ए-सानी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
ब-ज़ोम-ए-ख़्वेश अपने दौर के सुक़रात-ए-सानी हैं
मुक़द्दस लोग हैं 'अहमद-रज़ा-ख़ाँ’ की निशानी हैं
शोरिश काश्मीरी
नज़्म
वो मेरा यूसुफ़-ए-सानी वो शम-ए-महफ़िल-ए-इश्क़
हुई है जिस की उख़ुव्वत क़रार-ए-जाँ मुझ को
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
'सुमन' इस दर्द को इनआ'म-ए-यज़्दानी समझती है
और इस एहसास को एहसास-ए-ला-सानी समझती है