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नज़्म
वो इल्म में अफ़लातून सुने वो शेर में तुलसीदास हुए
वो तीस बरस के होते हैं वो बी-ए एम-ए पास हुए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
हर नफ़स रौ में लिए सोरिश-ए-तुग़्यान-ए-निहाँ
हर नज़र शौक़ का अफ़सान-ए-बे-ताब लिए
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
यानी बी-ए की सनद सदहा सिफ़ारिश की नुक़ूल
अर्ज़ियों के साथ दफ़्तर में न होती थीं क़ुबूल