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नज़्म
मुँह धो कर जब उस ने मुड़ कर मेरी जानिब देखा
मुझ को ये महसूस हुआ जैसे कोई बिजली चमकी है
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
सीने में घटाओं की बिजली, बेचैन है कौंदी जाती है
मंज़र की कुदूरत धो देगी धरती की प्यास बुझाएगी
जमील मज़हरी
नज़्म
ज़मीन-ए-पाक अब नापाकियों को ढो नहीं सकती
वतन की शम्-ए-आज़ादी कभी गुल हो नहीं सकती