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नज़्म
दुनिया की महफ़िलों से उक्ता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मगर वतन का हल-ओ-अक़्द जिन के हाथ में है
निज़ाम-ए-ज़िंदगी-ए-हिंद जिन के बस में है
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
बराए अक़्द-ख़्वानी क़ाज़ियों में फ़र्क़ है लेकिन
कराची और दिल्ली के छुवारे एक जैसे हैं