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नज़्म
चाक-गिरेबाँ इक दीवाना फिरता है हैराँ हैराँ
पत्थर से सर फोड़ मरेगा दीवाने को सब्र कहाँ
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
आठ करोड़ मस्ख़रे निकल आते हैं अपने रंगे चेहरों और लम्बी टोपियों के साथ
तोड़-फोड़ डालते हैं आसमान
सरवत हुसैन
नज़्म
शाह की कुर्सी में ढलने से कहीं बेहतर है
किसी फ़ुटपाठ के होटल का वो टूटा हुआ तख़्ता बनना
फ़ाज़िल जमीली
नज़्म
हमारी अम्मी हैं नेक सीरत हमें मिली है इन्हीं से राहत
सदा किचन में है काम उन का पका रही हैं चिकन फ्राई
अब्दुल क़ादिर
नज़्म
तोड़ फोड़ कर द्वार धनुष सब कर दे एक समान
मन-मंदिर में बस न सके तो मत कहला भगवान