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नज़्म
हुई फिर इमतिहान-ए-इशक़ की तदबीर बिस्मिल्लाह
गिनो सब दाग़ दिल के हसरतें शौक़ें निगाहों की
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मगर अपना हिसाब-ए-ख़ूँ-बहा लेने से पहले
गिनो सब हसरतें जो ख़ूँ हुई हैं तन के मक़्तल में
अशफ़ाक़ हुसैन
नज़्म
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
ये खेप भरे जो जाता है ये खेप मियाँ मत गिन अपनी