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नज़्म
फ़लक ने ज़ीनत-ए-निस्याँ बना के छोड़ दिया
रुसूम-ए-लुत्फ़ को दिल-जूई के क़रीनों को
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
जिस का मज़हब अम्न-जूई जिस का मशरब सुल्ह-ए-कुल
जिस के नग़्मों की लताफ़त है जवाब-ए-बर्ग-ए-गुल
अमजद नजमी
नज़्म
हम ने इस इश्क़ में क्या खोया है क्या सीखा है
जुज़ तिरे और को समझाऊँ तो समझा न सकूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता जी से जोड़ सुनाई हो
फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी आधी हम ने छुपाई हो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
आह लेकिन कौन जाने कौन समझे जी का हाल
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ