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नज़्म
इन रागनियों के भँवर भँवर में सदहा सदियों घूम गईं
इन क़रन-आलूद मसाफ़त में लाख आबले फूटे दीप बुझे
मजीद अमजद
नज़्म
मेरा दिल मैदानों जैसा वुसअत से भरपूर
लेकिन वो तो सदी सदी की क़र्न क़र्न की धूल समेटे