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नज़्म
ख़ाक-ए-सहरा पे जमे या कफ़-ए-क़ातिल पे जमे
फ़र्क़-ए-इंसाफ़ पे या पा-ए-सलासिल पे जमे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सफ़ा-ए-दिल को क्या आराइश-ए-रंग-ए-तअल्लुक़ से
कफ़-ए-आईना पर बाँधी है ओ नादाँ हिना तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हर सुब्ह-ए-गुलिस्ताँ है तिरा रू-ए-बहारीं
हर फूल तिरी याद का नक़्श-ए-कफ़-ए-पा है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
वो कफ़-ए-सैलाब वो शोर-ए-तलातुम हाए हाए
तेरी मौजों का वो अंदाज़-ए-तबस्सुम हाए हाए