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नज़्म
दुनिया की महफ़िलों से उक्ता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
लुत्फ़ की बात कहीं प्यार का इक़रार कहीं
दिल से फिर होगी मिरी बात कि ऐ दिल ऐ दिल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
गुलज़ार
नज़्म
क़ल्ब-ए-इंसानी में रक़्स-ए-ऐश-ओ-ग़म रहता नहीं
नग़्मा रह जाता है लुत्फ़-ए-ज़ेर-ओ-बम रहता नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
लिखा गया है बहुत लुतफ़-ए-वस्ल ओ दर्द-ए-फ़िराक़
मगर ये कैफ़ियत अपनी रक़म नहीं है कहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
लुत्फ़-ए-गोयाई में तेरी हम-सरी मुमकिन नहीं
हो तख़य्युल का न जब तक फ़िक्र-ए-कामिल हम-नशीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हुई जुम्बिश अयाँ ज़र्रों ने लुत्फ़-ए-ख़्वाब को छोड़ा
गले मिलने लगे उठ उठ के अपने अपने हमदम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
'फ़ैज़' दिलों के भाग में है घर भरना भी लुट जाना भी
तुम इस हुस्न के लुत्फ़-ओ-करम पर कितने दिन इतराओगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
गर किताबें हो गईं मैली तो क्या पढ़ने का लुत्फ़
काम की चीज़ें हैं जो उन की हिफ़ाज़त चाहिए