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नज़्म
रास्ते में रुक के दम ले लूँ मिरी आदत नहीं
लौट कर वापस चला जाऊँ मिरी फ़ितरत नहीं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
सोचता हूँ कि तुझे मिल के मैं जिस सोच में हूँ
पहले उस सोच का मक़्सूम समझ लूँ तो कहूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मैं साँस लूँ भी तो कैसे कि मेरी साँसों में
तुम्हारी डूबती साँसों के तीर चुभते हैं
ज़ुबैर अली ताबिश
नज़्म
मज़हब-ए-इश्क़ में जाएज़ है यक़ीनन जाएज़
चूम लूँ मैं लब-ए-लालीं भी अगर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
आओ कि तरसती बाँहों में इक बार तो तुम को भर लूँ मैं
कल तुम जो बड़ी हो जाओगी जब तुम को शुऊर आ जाएगा
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
मैं समझ भी लूँ अगर इस को मोहब्बत का जुनूँ
तुझ को इस इश्क़-ए-जुनूँ-ख़ेज़ से निस्बत क्या है
हिमायत अली शाएर
नज़्म
आ कि ज़ुल्मत में कोई नूर का सामाँ कर लूँ
अपने तारीक शबिस्ताँ को शबिस्ताँ कर लूँ