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नज़्म
वो इज्ज़-ए-ग़ुरूर-ए-सुल्ताँ भी जिस के आगे झुक जाता था
वो मोम कि जिस से टकरा कर लोहे को पसीना आता था
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
रनपूर के मंदिर में हम को मस्जिद के सुतूँ मिल जाते हैं
वहदत की इसी चिंगारी से दिल मोम हुआ है पत्थर का
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
हो तसव्वुर इश्क़ का और हो स्याही रात की
उम्र नाज़ुक मोम सी हो याद हो इस बात की