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नज़्म
ऐ मेरे वतन के फ़नकारो ज़ुल्मत पे न अपना फ़न वारो
ये महल-सराओं के बासी क़ातिल हैं सभी अपने यारो
हबीब जालिब
नज़्म
मसाई इन की सीम-ओ-ज़र के ढेरों में बदल देना
तिरे पास आएँ, मोती के महल मेहनत का फल देना
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मिरे लिए इस महल में आसूदगी नहीं है
कोई मुझे इन सफ़ेद पत्थर के गुम्बदों से रिहा किराए
ख़ुर्शीद रिज़वी
नज़्म
इत्र मलने के लिए कपड़े बदलने के लिए
महल-ओ-ऐवाँ में बहुत दस्त-ए-हसीनाँ होंगे