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नज़्म
दुनिया की महफ़िलों से उक्ता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कि मैं ने फ़ास्टस की तरह अपनी रूह बेची थी
मसर्रत की मुसलसल गर्दिश-ए-यकसाँ से उक्ता कर
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
पचास को वो क्रॉस कर के कुछ और ख़ूँ-ख़्वार हो गई है
अगर उसे आंटी कहो तो निगाह में हस्पताल रखना
खालिद इरफ़ान
नज़्म
ये सब कुछ ठीक है पर इस से जी घबरा भी जाता है
अगर मौसम न बदले आदमी उकता भी जाता है