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नज़्म
जिन की निगाहों ने की तर्बियत-ए-शर्क़-ओ-ग़र्ब
ज़ुल्मत-ए-यूरोप में थी जिन की ख़िरद-राह-बीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
यूरोप में बहुत रौशनी-ए-इल्म-ओ-हुनर है
हक़ ये है कि बे-चश्मा-ए-हैवाँ है ये ज़ुल्मात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बहुत होंगे मुग़न्नी नग़्मा-ए-तक़लीद यूरोप के
मगर बेजोड़ होंगे इस लिए बे-ताल-ओ-सम होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
औरों के लिए तो जीना ही ख़ुद अपने लिए भी जीना है
जीने की हर तरह से तमन्ना हसीन है
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
जो पार उतारे औरों को उस की भी पार उतरनी है
जो ग़र्क़ करे फिर उस को भी डुबकों डुबकों करनी है