aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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जो शुमाली मुजाहिद थाऔर पंज-वक़्ता नमाज़ी भी था
गालों पर बहने लगता हैफिर ठोड़ी के पंज-नद पर सब दुखों के धारे आ मिलते हैं
कभी इन पंज-वक़्ता खिड़कियों से धूप के मीनार पर चढ़ करये हय-अल-सस्लात-ए-दिल की गूँजें चाक करती है
दिल के अंदर ग़ैबी सूरज के गुल-रंग अजाइब जागेंपंज पोरों पर पाँच हिसों के फूल खिलीं
गोद लेना सदा तेरी रीती रहीपंज-शील आज तक तेरी नीती रही
मगर न औक़ात-ए-पंजगाना मेंएक भी वक़्त सूनी मस्जिद में झाँक पाएँ
जीवन तो इसी शश-ओ-पंज में गुज़र जाता हैदुनिया रहने की जगह है भी या नहीं
कितने बुतों को पूज चुकी हैकितने सज्दों की ताबानी
तू मेरी सम्त न देख ऐ मेरे खोए सपनेमैं उमीदों के सनम पूज के तोड़ आया हूँ
वो था ही नहींजिस को मैं पूज रही थी
पंज-कोनी आँखआँख की पुतली में मेरा ही अक्स मुक़य्यद
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