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नज़्म
तड़ता मुड़ता गिरता पड़ता आगे बढ़ता रहता है
पग पग पर इस का पल पल में पानी चढ़ता रहता है
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
ज़ाहिद-ए-ख़ुश्क हूँ दुनिया में न पूछो मुझ को
देखना हो तो किसी पग पे किसी पेड़ के नीचे जिस की
ज़ाहिद डार
नज़्म
लड़ता मुड़ता गिरता पड़ता आगे बढ़ता रहता है
पग-पग पर इस का पल-पल में पानी चढ़ता रहता है