aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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ज़बाँ पर ज़ाइक़ा आता था जो सफ़्हे पलटने काअब उँगली क्लिक करने से बस इक
इश्क़ कहते हैं जिसे इक नया समझौता हैपहले दिल मिलते थे अब नाम क्लिक होता है
वो मोर वो कब्क-ए-दरीवो चौकड़ी भरते हिरन
वादी-ए-कश्मीर की नुज़हत गुलों का रंग-ओ-बूसर्व का क़द कब्क की रफ़्तार क़मरी का गुलू
कैफ़ में इक ''लग़्ज़िश-ए-पा'' किल्क-ए-गौहर-बार की''इज़्तिरारी एक जुम्बिश सी'' लब-ए-गुफ़्तार की
कि वक़्त के हाथोंक्लिक किया जो बटन
क्लाक का तलाई अक्स भी दहल गयाबदन जो था बुख़ार के हिसार में पिघल गया
वारिस-ए-शहर गराँ-ख़्वाब उठेक़ुल्बा-रानी ने जिन्हें अज़्म-ए-मुसम्मम बख़्शा
क़ामत उस की सर्व से बेहतरकब्क-ए-दरी से चाल सुबुक-तर
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