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नज़्म
पैग़ाम-ए-अजल लाई अपने उस सब से बड़े मोहसिन के लिए
ऐ वाए-तुलू-ए-आज़ादी आज़ाद हुए उस दिन के लिए
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
ये सब जौहर हमारे थे कभी ऐ वाए-महरूमी
बने हैं ख़ूबी-ए-क़िस्मत से जो अब ग़ैर का हिस्सा
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
वो सब वफ़ादारियाँ कि जिन पर लहू के वा'दे हलफ़ हुए थे
वो आज से मस्लहत की घड़ियाँ शुमार होंगी
परवीन शाकिर
नज़्म
पब्लिक से झूटे वादे भी कर लेते हैं सभी
मैं नय भी इख़्तियार की ये पॉलीसी जभी