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नज़्म
धर्म क्या उन का था, क्या ज़ात थी, ये जानता कौन
घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
हुज़ूर मुस्कुरा रहे हैं मेरी बात बात पर
हुज़ूर को न जाने क्या गुमाँ है मेरी ज़ात पर
अहमद फ़राज़
नज़्म
गर ये सच है तो तिरे अद्ल से इंकार करूँ?
उन की मानूँ कि तिरी ज़ात का इक़रार करूँ?