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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये भी इक सरमाया-दारों की है जंग-ए-ज़रगरी
इस सराब-ए-रंग-ओ-बू को गुलिस्ताँ समझा है तू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तारिक़ क़मर
नज़्म
मुल्कों मुल्कों हम घूमे थे बंजारों की मिस्ल
लेकिन इस की सज-धज सच-मुच दिल-दारों की मिस्ल
अहमद फ़राज़
नज़्म
जियूँगा शाम-ए-दीद की निशानियाँ लिए हुए
न देखा आँख उठा के अहद-ए-नौ के पर्दा-दारों ने
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
ज़र-दारों को नग़्मों में जब जिस्म दिखाई देता है
एक महकती सेज पे अक्सर टूटती है हर तान यहाँ
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
पूछो इन सरमाया-दारों से कि कब जागोगे तुम
या यूँही पीते रहोगे बे-मुरव्वत मय के ख़ुम