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नज़्म
खिड़कियाँ बंद किए लोग सियह-ख़ानों में
राहत-ए-क़ल्ब को ढूँडेंगे इन अफ़्सानों में
चन्द्रभान ख़याल
नज़्म
कब नज़र में आएगी बे-दाग़ सब्ज़े की बहार
ख़ून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बा'द
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कल भी ढूँडूँगा इन्हें जा के गली कूचों में
कल भी मिल जाएँगे इन ख़्वाबों के पैकर कितने