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नज़्म
मेरे बचपन की मिरी प्यारी सहेली गोमती
तुझ पे क्या गुज़री है कि तू यूँ सिमट कर रह गई
शमा ज़फर मेहदी
नज़्म
लो वो चाह-ए-शब से निकला पिछले-पहर पीला महताब
ज़ेहन ने खोली रुकते रुकते माज़ी की पारीना किताब
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
कैलन्डर के बदलने से कहाँ माज़ी बदलता है
पुराने ज़ख़्म भरते हैं भला आँखों को भरने से