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नज़्म
और एक डोर जिस पर रंग-बिरंगे कपड़े सूख रहे हैं
जिस्मों के बग़ैर ये कपड़े, बच्चों के बग़ैर ये मैदान
सरवत हुसैन
नज़्म
पतंगें लूटने वालों को क्या मालूम किस के हाथ का माँझा खरा था और किस की
डोर हल्की थी
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
चारों जानिब ख़ुशबुओं के आँगन में जलते हुए रंगों की लहरें
हवा की डोर से बंधी हुई ऐसी कठ-पुतलियाँ हैं
जमीलुर्रहमान
नज़्म
दरीचा-ए-दिल के बंद होने से वक़्त के पुल-सिरात की तेज़ डोर टूटी
वही सफ़ेदी के पेच-ओ-ख़म थे