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नज़्म
दिखा दूँगा जहाँ को जो मिरी आँखों ने देखा है
तुझे भी सूरत-ए-आईना हैराँ कर के छोड़ूँगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं उस लड़के से कहता हूँ वो शोला मर चुका जिस ने
कभी चाहा था इक ख़ाशाक-ए-आलम फूँक डालेगा
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
दबेगी कब तलक आवाज़-ए-आदम हम भी देखेंगे
रुकेंगे कब तलक जज़्बात-ए-बरहम हम भी देखेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ऐसे छोड़ के उट्ठे जैसे छुआ तो कर देगा कंगाल
स्याने बन कर बात बिगाड़ी ठीक पड़ी सादा सी चाल
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी
ब-रब्ब-ए-काबा उस की याद में उम्रें गँवा दूँगा
अख़्तर शीरानी
नज़्म
कौन पोंछेगा मिरे बहते हुए अश्कों की धार
कौन पानी पढ़ के देगा होगा जब मुझ को बुख़ार
शहनाज़ परवीन शाज़ी
नज़्म
दफ़्न कर देगा जो ख़ालिक़ को भी मख़्लूक़ समेत
और ये आबादियाँ बन जाएँगी फिर रेत ही रेत
अहमद फ़राज़
नज़्म
ख़याल-ए-मौत को मैं अपने दिल में अब न दूँगा राह
जियूँगा हाँ जियूँगा ऐ निगाह-ए-आश्ना-ए-यार