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नज़्म
सर ले के हथेली पर उभरी थी जो दुनिया में
उस क़ौम को ले डूबा शुग़्ल-ए-मै-ओ-मय-ख़ाना
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
नज़्म
निगाह-ए-मस्त से उस की बहक जाती थी कुल वादी
हवाएँ पर-फ़िशाँ रूह-ए-मय-ओ-मय-ख़ाना रहती थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
''या हाथों-हाथ लो मुझे मानिंद-ए-जाम-ए-मय''
''या थोड़ी दूर साथ चलो मैं नशे में हूँ''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
तुम यूँही ज़िद में हुए ख़ाक-ए-दर-ए-मय-ख़ाना
मुझ को ये ज़ोम कि मैं ने तुम्हें टोका कब था
शाज़ तमकनत
नज़्म
जाम पुर-शोर से गिर जाने दो नाकाम तमन्नाओं की मय
फ़र्श-ए-मय-ख़ाना-ए-उल्फ़त पे उलट दो साग़र
ज़ाहिदा ज़ैदी
नज़्म
देखिए देते हैं किस किस को सदा मेरे बाद
'कौन होता है हरीफ़-ए-मय-ए-मर्द-अफ़गन-ए-इश्क़'
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ख़याल-ए-नज़्म-ए-मय-कदा नहीं है फ़िक्र-ए-जाम है
मिला वो इख़्तियार जिस पे बेबसी है ख़ंदा-ज़न
मोहसिन भोपाली
नज़्म
न ज़ौक़-ए-जाम-ओ-मय-कदा न बुत-कदे की आरज़ू
न तौफ़ कू-ए-यार का न हसरतें न जुस्तुजू