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नज़्म
तीर-ए-इफ़्लास से कितनों के कलेजे हैं फ़िगार
कितने सीनों में है घुटती हुई आहों का ग़ुबार
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
चम्पा के महकते पहलू में ख़ुश-रंग गुलाब आ जाते हैं
ज़ेहनों की तहों में आज भी है लहरा वो हसीं शहनाई का
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
रश्क-ए-सद-ख़ुर्शीद था हर-ज़र्रा-ए-देहली-ए सुना
मारता चश्मक सफ़ा पर था ग़ुबार-ए-लखनऊ
हकीम आग़ा जान ऐश
नज़्म
ऐ मतवालो नाक़ों वालो! नगरी नगरी जाते हो
कहीं जो उस की जान का बैरी मिल जाए ये बात कहो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
कैसे कैसे अक़्ल को दे कर दिलासे जान-ए-जाँ
रूह को तस्कीन दी है दिल को समझाया भी है
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
गुबार-ए-रहगुज़ार-ए-दहर में आलूदगी कब तक
मिरे ज़र्रीं तसव्वुर को बिसात-ए-कहकशाँ दे दे