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नज़्म
लुग़त से अपनी ख़ारिज कर दिया था जाने कब तुम ने
सुना ये है तुम्हें क़ुरआन भी अच्छी तरह पढ़ना न आता था
इशरत आफ़रीं
नज़्म
रफ़ीक़ संदेलवी
नज़्म
नज़र को ख़ीरा करती है चमक तहज़ीब-ए-हाज़िर की
ये सन्नाई मगर झूटे निगूँ की रेज़ा-कारी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ऐ ग़ाफ़िल तुझ से भी चढ़ता इक और बड़ा ब्योपारी है
क्या शक्कर मिस्री क़ंद गरी क्या सांभर मीठा खारी है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
हत्ता कि अपने ज़ोहद-ओ-रियाज़त के ज़ोर से
ख़ालिक़ से जा मिला है सो है वो भी आदमी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मिट नहीं सकता कभी मर्द-ए-मुसलमाँ कि है
उस की अज़ानों से फ़ाश सिर्र-ए-कलीम-ओ-ख़लील
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हवस-कारी है जुर्म-ए-ख़ुद-कुशी मेरी शरीअ'त में
ये हद्द-ए-आख़िरी है मैं यहाँ तक जा नहीं सकता