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नज़्म
इक़बाल सुहैल
नज़्म
नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में नहीं
उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में नहीं
उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं