aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "KHasam-jaan"
वो रौशनियों में नाचने वालीख़ानम-जान
तेरी इस सोख़्ता बख़्त को क्या ख़बरजब ज़मीं अपने महवर की तज्दीद में
तेरी इस सोख़्ता-बख़्त को क्या ख़बरजब ज़मीं अपने महवर की तज्दीद में
शौक़ से पढ़ते हैं उस को ख़ास-ओ-आमजब क़सीदा लिखते हैं हम आम का
इस्टालिन-ओ-लेनिन की क़सम जाम की सौगंदऐ ज़ोहरा-जबीं पिघली हुई आग पिला दे
तुम मता'-ए-दिल-ओ-दुनिया हो मिरी जाँ की क़समजब तुम्हें देखता हूँ देख के ये लगता है
जिन को खोला तक न था हम नेबस इक तह-ख़ाना-ए-उम्र-ए-गुज़िश्ता में
बहुत बुलंदी पे जाने वालों को मंज़िलों की ख़बर नहीं हैकई मुसाफ़िर भटक चुके हैं
मुझ को ऐ शाह-ए-वतन अपने इरादों की क़समजिन के सर काटे गए इन शाह-ज़ादों की क़सम
अंखों को बंद करना पड़ता हैबे-ख़बर जग से होना पड़ता है
वो जब नाराज़ होती थीतो अपने गार्डेन
उफ़ुक़ के पार क्या है जान और दिल को ख़बर होतीजहाँ तक जा नहीं सकती वहाँ शायद नज़र होती
जैसे मछलीसियाह जाल से बे-ख़बर
चाहे जाने की ख़्वाहिश में मर जाएँगेऐ दिल-ए-बे-ख़बर तू न सह पाएगा
क्या ख़बर क्या बीत जाए अगले पलइस सफ़र में ज़ेहन सोचों के थपेड़ों
मिरी अर्धांगिनीमेरी शहादत की ख़बर सुन कर
रात इक घर जल गया!घर जला तो आग में
क़सम शौक़ की फ़ितरत-ए-मुज़्तरिब कीयूँही नित-नई धुन में गाए चला जा
जिस ने जन्म की घुट्टी चक्खीउस को ज़ीने तय करना हैं
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