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नज़्म
दो शम्ओं' की लौ पेचाँ जैसे इक शो'ला-ए-नौ बन जाने की
दो धारें जैसे मदिरा की भरती हुइ किसी पैमाने की
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
ख़्वाबों के गुलिस्ताँ की ख़ुश-बू-ए-दिल-आरा है
या सुब्ह-ए-तमन्ना के माथे का सितारा है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
क्या अच्छा ख़ुश-बाश जवाँ था जाने क्यूँ बीमार हुआ
उठते बैठते मीर की बैतें पढ़ना उस का शिआर हुआ
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
कैसे कैसे अक़्ल को दे कर दिलासे जान-ए-जाँ
रूह को तस्कीन दी है दिल को समझाया भी है
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
ले के नाम अल्लाह का तूफ़ाँ में कश्ती डाल दे
ख़ौफ़-ए-बे-पायानी-ए-दरिया-ए-मौज-अफ़ज़ा न कर
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
ख़ौफ़-ए-बे-हुरमती-ओ-फ़िक्र-ए-ज़ियाँ है तो उठो
पास-ए-नामूस-ए-निगारान-ए-जहाँ है तो उठो