aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "KHusro"
मिरी पैकार अज़ल सेये 'ख़ुसरो' 'मीर' 'ग़ालिब' का ख़राबा बेचता क्या है
सो अपना अपना रास्ताहँसी-ख़ुशी बदल दिया
वो नौ-शेरवाँ और ज़र-दुश्त और दारियूशवो फ़रहाद शीरीं वो कै-ख़ुसरो ओ कै-क़बाद
हैदराबाद जिसे शहर-ए-निगाराँ कहिएरंग-ए-रुख़्सार सहर-ए-हुस्न-ए-बहाराँ कहिए
मोहब्बत की हरारतदिल को पिघलाए बिना रह ही नहीं सकती
सुनोकुछ देर हम इक दूसरे का
ये रात होगी तवील कितनीबुलंद होगी फ़सील कितनी
ये आँखें इक ऐसे शख़्स काअतिया हैं
ये जाड़े के दिन और ये जाड़ों की रातेंलिहाफ़ और सूटर की हर घर में बातें
तुम मिरे क़त्ल के बादअपनी महफ़िल तो सजाओगे मगर
लौट कर जब न घर गई होगीइक क़यामत गुज़र गई होगी
अपने अपने कामों सेवक़्त जो भी बचता था
सुब्ह सो कर जो उठोचाय पियो और फिर अख़बार पढ़ो
कभी ऐसा भी होता हैकि बरसों बा'द
हर इक साअ'तहर इक नफ़स
मैं अपने हाथों से सोचता हूँऔर अपने पोरों से
चाँदनी-रातों के रसियाउस रात भी उस की राहें
अजनबी हों कि होंअजनबी शहर के
कभी तुम नेकिसी छोटे से बच्चे को
मिरी बाजीबहुत देर से मुझे आवाज़ें दे रही थीं
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