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नज़्म
हवस ने कर दिया है टुकड़े टुकड़े नौ-ए-इंसाँ को
उख़ुव्वत का बयाँ हो जा मोहब्बत की ज़बाँ हो जा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
टुकड़े टुकड़े जिस तरह सोने को कर देता है गाज़
हो गया मानिंद-ए-आब अर्ज़ां मुसलमाँ का लहू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
लहू होना था इक रिश्ते का सो वो हो गया उस दिन!!
उसी आवाज़ के टुकड़े उठा के फ़र्श से उस शब
गुलज़ार
नज़्म
झूटे टुकड़े खा के बुढ़िया तपता पानी पीती थी
मरती है तो मर जाने दो पहले भी कब जीती थी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ना-गहाँ आज मिरे तार-ए-नज़र से कट कर
टुकड़े टुकड़े हुए आफ़ाक़ पे ख़ुर्शीद ओ क़मर