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नज़्म
अब तक मेरे गीतों में उम्मीद भी थी पसपाई भी
मौत के क़दमों की आहट भी जीवन की अंगड़ाई भी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हम चुप हैं लेकिन फ़ितरत का इंसाफ़ दुहाई देता है
उठ बैठे अंगड़ाई ले कर जो ग़फ़लत का मतवाला है
जमील मज़हरी
नज़्म
चार तरफ़ से घबरा के उस को मार रही है फैली हुई नीली तन्हाई
ख़ुश्बू ने ली इक अंगड़ाई